By Maulshree
अश्क़-ऐ -मंज़र लिए नज़रों में
हम हँसते चले गए
काँटों भरी राहों में
हम चलते चले गए |
नाराज़गी उनसे थी या खुदसे
ये समझ ना पाए हम
ख्यालों से अपने हकीकत में
हम लड़ते चले गए |
उनकी खुशियों के खातिर
गम भुला दिए अपने
दुआओं का पैमाना
हम भरते चले गए |
वाक़िफ़ हुए जो उनसे
अनजान खुद से हो गए
भूला के खुदको उन्हें
हम याद करते चले गए |
अल्फ़ाज़ों में अपने
ख्यालों को उनके
दास्ताँ -ऐ -हयात बराबर
हम लिखते चले गए |
आशना में उनकी
तन्हाई के साथ
ज़िन्दगी क़तरा क़तरा
हम जीते चले गए |
पर कहा चले गए ?
Unke khayalon se unke
Alfaazon tak
Khamoshi se sab kuch
Hum sunte chale gaye…??
Nice poem Maulshree.
Lovely .. Wonderful art or words.
So beautiful ❤….can feel the emotions behind every line.