By Kumar Harshit
जानना हो अगर गुनाह क्या है ?
ज़रा इन बच्चों से पूछो बचपना क्या है
छीन बचपन इनका किसी ने बहुत दूर है फेंका
इनमें से कितनो ने तो अपनी माँ को भी नहीं देखा
होश संभला तो हाथों में एक कटोरा था
किसी बच्चे की भी गोद में एक बच्चा था
जो रो रहा था
रुकते ही गाड़ियों के शीशे खटखटाएँगे
यहाँ नहीं तो अगले सिग्नल पर मिल जाएँगे
आँखों में उम्मीद और कुछ पैसों की चाह होगी
चीर देगी अंदर तक एक ऐसी तुम पर निगाह होगी
खा के तरस कुछ लोग पैसे दे भी देंगे
कुछ आगे बढ़ो कहकर अपनी राह चल देंगे
शाम को होगा हिसाब, कोई गिनेगा सारा पैसा
जो कम हुई हो कमाई तो सुलूक होगा जानवरों जैसा
पर बचने को इस बर्ताव से अगले दिन और कमाना होगा
जो गोद में वो बच्चा था ना, उसको ज़रा रुलाना होगा
क्यूँ ना यूँ माहौल बनाएँ के मौक़े इन्हें अज़ीम मिलें
मेरे यूँ कुछ लिखने से इन बच्चों को तालीम मिले
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बहुत ही शानदार , keep up the good work..
Kehne ko hain hum pass, lekin phir bhi kitni doori hai.
Harsh reality of innocent flowers. Written Beautifully
Beautifully expressed!
Beautifully expressed poem ,jst keep up the good work
Beautiful expression.
बहुत ही शानदार , keep up the good work..
Profound and powerful representation of the dark side of our society. Amazing work.
very nicely portrayed the sad reality through poem.. 👌👌👍👍
Simple yet loud poem. Thanks for beautiful peice of work.
👍👍 bahot bdiya