इस बार इकरार में

By Anagha Kinjavadekar

कभी किसी शर्त के तहत
कुछ लिखा नहीं 
और तुम्हारी तो शर्त भी पेंचीदी थी 
'कविता रोमांटिक होनी चाहिए'
          शब्दकोश टटोले, 
          पुरानी हिंदी फिल्मों के गाने सुने
          यहां तक की रोमांस की कल्पना भी की
          पर एक मुस्कान और कुछ
          इधर उधर छितराए ख्यालों के सिवा 
          कुछ समझ नहीं आ रहा था 
थक हार कर, रजाई की गर्माहट से
बाहर निकल, बालकनी में गई 
बगल में कोई सिगरेट के कश ले रहा था 
उसके मुँह से धुआँ निकल
हवा में कुछ ऐसे मिला, जैसे मानो
हवा में वह मुझे रोमांस सिखा रहा हो
    न जोड़ का कोई निशान 
    न धागे के टांके 
    न मिलावट के दो रंग
              मैं हस पड़ी
              इन्कार में सर झटका और
              दीवार की ओर देखने लगी 
कीड़ों का झुंड, बालकनी के पीले बल्ब से 
चिपक रहा था, जैसे मानो
रौशनी में वह मुझे रोमांस सिखा रहा हो
     न जलने का कोई दाग़
     न नाराजगी के कोई शब्द 
     न अपेक्षा की झुंझलाहट 
           मैं हस पड़ी
          इन्कार में  सर झटका 
         और जूते की अलमारी की ओर देखने लगी
दो जूतों का जोड़ 
एक दूसरे पर लुढ़क रहा था 
फीते एक दूसरे में उलझ रहे थे, जैसे मानो 
उलझन में मुझे रोमांस सिखा रहे हों
      न उलझनों से शिकायत 
      न सुलझने की ख्वाहिश 
      न अलग होने का डर
              मैं हस पड़ी 
              इन्कार में सर झटका 
             और डूबते सूरज की ओर देखने लगी
आसमान के पीछे छुपता 
चांद को अपनी जगह देता 
कुछ ऐसी मद्धम गति से जा रहा था, जैसे मानो
अपने सिलसिले में मुझे रोमांस सिखा रहा हो
      न डूबने का डर
      न उगने की व्याकुलता 
      न अंधेरे का तिरस्कार 
               मैं हस पड़ी
               इन्कार में सर झटका 
              और कागज कलम की ओर देखने लगी
कलम की स्याही कुछ बह रही थी 
कागज़ कोरा, घूर रहा था 
लफ्ज़ इतरा रहे थे, जैसे मानो
बेशर्मी में मुझे रोमांस सिखा रहे हों 
       न अस्वीकृति से जिझक
       न गलत फहमी से संत्रास 
       न समझने की गुजारिश  
मैं हस पड़ी
इस बार इकरार में..

2 comments

  • मैं हस पे अड़ी इस बार इकरार में ?

    Siddharth Sharma
  • It’s a beautiful poem, I am glad that I stumbled upon it and got a chance to read it. Truly great work, keep Inspiring :)

    My fav lines

    न जलने का कोई दाग़ न नाराजगी के कोई शब्द न अपेक्षा की झुंझलाहट

    लफ्ज़ इतरा रहे थे, जैसे मानो
    बेशर्मी में मुझे रोमांस सिखा रहे हों

    I have written one too here https://delhipoetryslam.com/blogs/magazine/drishaya
    let me know what you think about it :)

    Anirudh Krishna

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