By Keeratleen Kaur
हमारी धरती बङी सयानी है
मान जाती सबकी मनमानी है
बिना कुछ कहे इसने हमेशा सब लुटाया है
और इनसान ने सदा मदारी बन
इसे जमूरे सा नचाया है
अब हालात ऐसे हैँँ
सबको बचाने के चक्कर मेँ
आगई धरती पर ही परेशानी है
और लगता है बची इसकी सिफ्र पल दो पल की कहानी है
माना धरती का गोल आकार है
पर इसके हर कोने मे बसता अलग सा संसार है
वैसे भारत मेँ दिखते प्रकृति के कई प्रकार हैं
उदाहरण के लिए मनाली के पहाड़ बिलकुल बेमिसाल हैं
पर इनसान ने इसकी कदर अभी तक ना जानी है
तभी लगता बची धरती की पल दो पल की कहानी है
कहते हैं कटी हुई टहनियां कहाँ छाँव देती हैं
हद से जयादा उममीदे हमेशा घाव देती हैं
यह कहने वाला इनसान एक ऐसा मदारी है जो करता सिफ्र अपना ही जिक्र है
इसे न धरती न ही बेजुबानों की फिक्र है
बेजुबान जानवरों से भी यह खेलता जानलेवा से खेल है
सच कहूँ तो इनसानियत के नाम पर आज बिकता सिफ्र मतलबीपन और लालसा का मेल है
इन सब की वजह से धरती रानी बनी नौकरानी है
अब लगता धरती की बची पल दो पल की कहानी है
मेरी इक छोटी सी आस है
मुझे एक बेपनाह पयार करने वाले दोस्त की तालाश है
इनसानों से जयादा अब जानवरों को चाहती हूँ मैं
हाँ बेजुबान और बेपनाह पयार को दिर से सरहाती हूँ मैं
अकसर दिल की बातें ऐसे ही लिखकर बयान कर जिती हूँ मैं
जिनदगी की माया किसी ने न जानी है
न जाने कब धरती रह जानी पल दो पल की कहानी है।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Mother Gaia'
This poem shows reality of what we so called humans are doing to aur nature. it depicts truth of our deeds towards our nature…..too deeep..keep writing ..keep it up kiki @keeratleen kaur
The poem holds the true essence of reality ..it actually defines what humans are loosing behalf of their deeds !! Good job and keep writing!!
Lovely