हमारे देश में

हमारे देश में 
कड़कती गर्मी जरुर पड़ती है
पर इंसानों का कठोर दिल
पिघला नहीं पाती है, 
मैं रोज गुजरते हुए
देखता हूँ
तमाम गाड़ियों में बैठे
अमीर इंसानों को, 
कभी कभी तो 
उनकी गाड़ी के शीशे में
अपने फट्टे कपड़े
अपने गंदे बाल देखकर 
नजर झुक सी जाती है, 
बहुत गुस्सा आता है
उस भगवान पर 
जिसने मुझे जीवन तो दिया
पर मॉं बाप नहीं दिये, 
पर फिर झुकी नजरों को
हिम्मत करके उठाता हूँ
और दो पैसे कमाने के लिए
गाड़ी पौछतां चला जाता हूँ, 
सुबह सफेद कपड़े से
शुरुआत होती है
और समय बीतते बीतते
रात के जैसा वो काला पड़ जाता है, 
कभी कभी तो सोचता हूँ
मेरी पूरी जिंदगी
ट्रैफिक सिग्नल के 
ईर्द-गिर्द ही रह जायेगी, 
और मैं अनपढ़
गरीब, बेईमान,
बेनाम, बेचारा
किस्मत का मारा ही कहलाऊगां !!
-------------------------------------------------------------------------------------------
This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Street Kids'

2 comments

  • cialis online cheap

    Theankess
  • It clearly defines their conditions and is simple yet so poetic .

    Mansi

Leave a comment

Please note, comments must be approved before they are published