हकीकत की ओर

अनाम

हूँ अँधेरे के साए से घिरा,

मैं और मेरी तनहाई यहाँ,

नज़र न आए कोई सिरा,

न जाने जाऊं कहाँ ?

 

यहाँ से कुछ नज़र न आता,

मुझसे मिलने कोई न आता,

अपनी सारी हिम्मत हारे, 

जियूं तो किसके सहारे ?

 

खिडकियों से बाहर झांकता,

खुशियों का दामन नज़र आता,

किन्तु अंदर है इतना गम,

क्या यह है मेरे मन का भ्रम ?

 

यहाँ करने को है न कुछ,

सपने देखता होके गद,

इस दुनिया मे, मैं तुच्छ,

क्या रहूँगा निरापद ?

 

पर यह सपने ही हैं जो,

देते आशा की किरण,

यह सपने ही हैं जो,

देते जीने की उमंग !

 

इन सपनो में करता हूँ कल्पना,

आज नहीं तो कल होगा सब कुछ मेरा,

यह दुनिया मुझे देगी पनाह,

मेरे जीवन में होगा नया सवेरा !

 

नहीं जीना मुझे और यहाँ,

उजाले की ओर है जाना,

तोड़ तनहाई से नाता,

मैं ख़ुशी का साथ निभाऊंगा !

हाय, इतने सालों में आज,

दिखी है आशा की किरण 

जैसे मन के घने जंगल में हिरण,

अब जाऊंगा मैं...

हकीकत की ओर !


2 comments

  • Shaandaar bhai itni aachi hindi kab se ho gayi teri

    Abhinav
  • sundar…..atisundur

    Swadesh

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