अनाम
हूँ अँधेरे के साए से घिरा,
मैं और मेरी तनहाई यहाँ,
नज़र न आए कोई सिरा,
न जाने जाऊं कहाँ ?
यहाँ से कुछ नज़र न आता,
मुझसे मिलने कोई न आता,
अपनी सारी हिम्मत हारे,
जियूं तो किसके सहारे ?
खिडकियों से बाहर झांकता,
खुशियों का दामन नज़र आता,
किन्तु अंदर है इतना गम,
क्या यह है मेरे मन का भ्रम ?
यहाँ करने को है न कुछ,
सपने देखता होके गद,
इस दुनिया मे, मैं तुच्छ,
क्या रहूँगा निरापद ?
पर यह सपने ही हैं जो,
देते आशा की किरण,
यह सपने ही हैं जो,
देते जीने की उमंग !
इन सपनो में करता हूँ कल्पना,
आज नहीं तो कल होगा सब कुछ मेरा,
यह दुनिया मुझे देगी पनाह,
मेरे जीवन में होगा नया सवेरा !
नहीं जीना मुझे और यहाँ,
उजाले की ओर है जाना,
तोड़ तनहाई से नाता,
मैं ख़ुशी का साथ निभाऊंगा !
हाय, इतने सालों में आज,
दिखी है आशा की किरण
जैसे मन के घने जंगल में हिरण,
अब जाऊंगा मैं...
हकीकत की ओर !
Shaandaar bhai itni aachi hindi kab se ho gayi teri
sundar…..atisundur