शानवी
तुझे ख़बर भी न थी क्या होता चला गया ......
तेरा ही तो था सबकुछ,फ़िर भी सब तेरा मेरा होता चला गया !
तू तो दौड़ ही रहा था रफ़्तार में अपनी,
तुझे पता भी न चला कि तू कब एक पल के लिए रुका,और तेरा चलना मेरा हमसफ़र होता चला गया !
न जानें क्या ऐसी बात थी उस लम्हें में ?
यूँ तो न तूने कुछ बोला,न मैंने कुछ सुना,
फ़िर भी कहते हैं सब कि उस एक पल के बाद..
मेरा और तेरा सबकुछ हमारा होता चला गया!
न तारे गिरे आसमान से,न चाँद ने झाँका झरोखे से,
न तूने कोई लौ बुझाया,न ही मैंने कोई नूर सजाया...
फ़िर भी....न जाने क्यों लगता है अब भी ऐसा?
कि उस रात के बाद...रूह का हर परदा बेपर्दा होता चला गया !
तुझे ख़बर ही न थी क्या होता चला गया....
कैसे तेरा सबकुछ मेरा होता चला गया !
अब याद बस इतना ही आता है कि....
कुछ तो था शायद,कोई बात मेरे और तेरे बीच में तो थी शायद....
कि हम रोकते चले गए और अफ़साने बनते चले गए,
यूँ ही हर तार पर..
फ़लक की भी हर दीवार पर,हमारा फ़साना बनता चला गया !
हमें ख़बर भी न थी...क्या होता चला गया ,
हमारा सब हमसे ही बिछड़ के किसी और का होता चला गया !
कहा चला गया ?