Premlata Singh
ऐसा लगता है मानो कल ही की बात थी
जब मैं अकेला था किसी सफर में और तुम मेरे साथ थी
ख़ैर.… अब मैं हूँ अनजान अपनी मंज़िल से
पर तुम्हारी कही हर एक बात आज भी मुझे याद थी
कभी किसी मोड़ पर में फिर हम मिले तो
एक बार कह देना तुम मुझे बहुत याद आते हो
यादों की गली रहते हो फिर भी
न जाने क्यू अकसर छेड़ जाते हो
झूठ है पर मैं जानता हूँ तेरे सपनो को आज भी अपना मानता हूँ
छोड़ दिया था तुने टूटे शीशे की तरह
पर आज भी मैं उसमे तुम्हारा अक्ष पहचानता हूँ
तुम अकसर मेरे खयालो में आती हो,
जब........
वो अधूरा सा गीत में मेरे कानो में जोर से गुनगुनाती हो
मैं मुस्कुरा दिया करता हूँ जब भी तुम
इस तरह से सताती हो, बातें तो बीत गयी हैं पर
तुम आज भी उतना ही रुलाती हो
एक सच कहूँ तुम से मुझे तुम बहुत याद आती हो
वो गली, वो शहर चलते चलते तुम किसी मोड़ पर खो गयीं
परेशानियां तुम्हारी थी पर देखते ही देखते हमारी हो गयी
तुम्हे याद ना हो शायद पर मैंने कहा था एक दिन
क्या तुम मुझे लिखना सिखाओगे ?
लिखना तो तुम यूं ही सीख जाओगे पर
सवाल तो दर्द का है, ये दर्द कहाँ से लाओगे ?
आज फिर मैं सोचता हूँ
तुमने हर ज़ख़्म ऐसा गहरा दिया है
धड़कनो को भी ठहरा दिया है
अब सिर्फ दर्द ही नहीं था शौक़ -ए - शायरी में मेरी
हर बात तो उस हमदर्द की है
जिसके पास दवा मेरे हर मर्ज़ की है
लिखने की तमना तो मेरे शायर दिल की भी थी
पर दाद देने पड़ेगी दोस्त उस हमदर्द की
जिसने मेरी हसीन ग़ज़ल को
दर्द भरा नगमा बना दिया !
देख पगली! आज तूने फिर से रुला दिया
Majjaaa agyaaa…gd wrk….keep writing like dis……
wow dear its just awsm… keep it up
Greaт poeтry preмlaтa..ĸeep ιт υp..ι wιll waιт ғor yoυr neхт poeтry.🙂
Beautiful