विश्वज्योति बनर्जी
सुना था की मिलने वाला है बस कुछ दिनों में सस्ते, ताज़े, अच्छे गाज़र |
किसी ने कहा की भाया ज़रा सब्र रखो, अभी तो बोहत मेहंगा चल रहा है गाज़र, कुछ दिनों में आ जायेगा सस्ते, ताज़े, अच्छे गाज़र |
सब्र और गाज़र की चाह ने मनो मुझे झंजोर दिया हो,
दिल-दीमाग ने मानो कोई जंग सा छेड़ दिया हो |
शिफ़र शिफ़र एक शिफ़र शिफ़र दो...
वक़्त का काँटा बस बेचैन कर रहा हो...
इस बार भीड़ में से ही पर ऊपर टंगे चोंगे में से कुछ आवाज़े आई,
अह्म्म्म 1...2...3... 1...2...3 माइक टेस्टिंग टेस्टिंग टेस्टिंग 1...2...3
हाँ तो बहनों भाइयों दिल थाम के बैठिये ।
फलना डीमका बाबा बस आने ही वाले हैं और आप को बताने वाले हैं की कब मिलेगा आप को आपका प्रिय गाज़र ।
विच्लित मन को थाम कर हम...
गर्म खून मनो यका-यका अब गया हो जम...
दिल की धड़कने मनो बस गया हो थम...
आंखों के सामने मानो अब खड़ा हो यम ।
शिफ़र शिफ़र एक शिफ़र शिफ़र दो शिफ़र तीन
वक़्त का काँटा बस बेचैन कर रहा हो...
आनन फानन में कुछ चेले आये,
बाबा की जय का हुंकार लग्वाये,
बड़े देर बाद हमारे बाबा जी आये,
हमे लगा कुछ अच्छे समाचार मनो अपने झोले में हो लाये ।
बाबा आते ही सब शांत होगया
चारो तरफ बस बाबा मय होगया
बड़े मौन के बाद बाबाजी बोल,
सालो पुराना मौन को तोड़े,
संसार, पूरब, पच्छिम की बाते करते
बाबाजी अपने चेलो को घुरते ।
अंत में बाबा बोले "हमें स्मरण है की आप की आशा क्या है,
आप के मनो में जिज्ञाषा क्या है "।
सब्र रखो मैं बतलाता हूँ...
सस्ते, अच्छे,बिकुल ताज़े आप लोग को गाज़र मैं दिलाता हूँ ।
आपने अपने नेताओ पर बहुत किया भरोसा, टकटकी बाँध कर किया न जाने कितनी आशा ।
घबराओ नहीं मैं आया हूँ साथ में
तुम्हारे समस्याओं का हल लाया हूँ।
यह देखो यह है ओर्गानीक सीड,
विच्लित मत हो बस रखो उम्मीद ।
आज चलता हूँ फिर आऊँगा,
पर इस बार सब के लिए ओर्गानीक
गाज़र लाऊंगा ।
आशा की किरण बारे बाबाजी चल दीये,
सुमड़ी में ही 1 2 3 हो लीये।
आज भी भूखा हूँ कोई तो आओ,
हमारे पेट की भूख मिटाओ ।
Devdatt Thengdi
Shukriya Sirji :)
“आशा की किरण बारे बाबाजी चल दीये,
सुमड़ी में ही 1 2 3 हो लीये।”
मज़ा आ गया भाई। बहुत दिन बाद ऐसी कविता पढ़ने का सौभाग्य मिला है।
इस तरह की कविताओं का हमें इंतज़ार रहेगा।
कहीं और भी लिखते हो ?