By Gaurav Dayam
बस एक बार तुमसे उलझना चाहती हूँ,
रात में चांदनी जैसे अठखेलियाँ करती है,
और ठंडी हवा दरख़्तों के साथ झूमती है,
मैं भी तेरे संग यूँ झूमना चाहती हूँ,
बस एक बार तुमसे उलझना चाहती हूँ,
किसी पुरानी डायरी में छुपे गुलाब जैसे,
या राह चलते अजनबी में अपने यार जैसे,
मैं भी तुमको यूँ अचानक से मिलना चाहती हूँ,
बस एक बार तुमसे उलझना चाहती हूँ,
माना कि अपनी कहानी मुख्तसर रही,
माना कि हम एक दूसरे के लिए मयस्सर नहीं,
मगर मैं उन्हीं यादों को मुसलसल जीना चाहती हूँ,
बस एक बार तुमसे उलझना चाहती हूँ,
मैं उन यादों को अपने हाथों में संजो लेना चाहती हूँ,
और खुद को उनमे मिला देना चाहती हूँ,
तुम और मैं आपस मे यूँ उलझे की सुलझ ना पाएं,
बस एक बार तुमसे उलझना चाहती हूँ,
हवाला वक़्त का पूरी दुनिया ही देती है,
मगर तुम और मैं वक़्त से परे हैं,
जहां पहली बार मिले थे फिर वहीं चलना चाहती हूँ,
बस एक बार तुमसे उलझना चाहती हूँ..
Thank you Diksha!
Very nice … Keep it up ☺️
Thank you Neha!
Bhut khub ….keep it up …,oll d best