Bachpan

By Kaushal Saboo

 

वो दिन भर खेलनावो नादानियो का बावल,

वो पडोस मे छूपनावो रात का मलाल,

वो दादी के हाथ का शीरावो माँ का परोसना,

वो पसंद की फरमाइशनापसन्द को कोसना।

 

वो स्कूल बस को पकडनावो दोस्तों का मिलाप,

वो चॉक चुरानाया गेम पीरियड के लिए जाप,

वो हफ्ता मज़े में कटे फिर भी रहो रविवार के नवाब,

वो जिंदगी की छोटी छोटी दिक्कतेऔर बड़े बड़े ख्वाब |

 

वो दुस्सेहरे का दहन या दिवाली का फरार,

वो मंदिर की घंटी और हम पापा के कंधो पे सवार,

मेरे सपने की फिल्म में यह लम्हा किसी खान सा छागया है,

पीछे से किसी ने टपली मारी कहा - "उठमैनेजर आगया है" |

 

अब गयी वो नवाबीअब तोह से 5में मै खुद को टटोलता हु,

अब मै ज़िम्मेदारी के गुलक में नादानियों को बटोरता हु,

जब नकाबों से नहींसाफ़ आयनों से थे अपने मन,

ऐसा हसीन सफर था अपना बचपन |

 

साल होगये घर छोड़ेकितने रास्ते बदल चुके है,

घर कही नहीं मिलाजबकि कही जगह रुके है,

अब जीतने की और ज्यादा पाने की ऐसी है लत लगी,

मगर क्या करे यह सफर है ज़िन्दगी काया अब सफर ही ज़िन्दजी ||

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Travelling' 

3 comments

  • Good work.

    Sushritha Danturi
  • Beautifully written!

    Arushi
  • Nyc lines

    Kiran

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