अनमोल बिसोई (प्रेसियस)
शोर था , अवाज़ था
एक ुनसुन्ना जस्बात भी था
कुछ सिसकियाँ कुछ आंसू थे
कुछ बेधड़क धन्द्कों का शोर था
हम गम में थे के खुसी में थे
होश न था
बेहाल हाल में खुद ही का पता ढूंड रहे थे
उन्न शिकायतों की महफ़िल में
एक अपना सा ढूंड रहे थे
जामने भर की भाग दोड़े में
एक तनहा हम ही छूट गए थे
दोस्तोँ की महफ़िल में एक हम ही से सब रूठ गए थे
बेवजह सा लगने लगा हमारा जीना
बेबुनियाद सा लगने लगा हमारा जिन्दा होना
शोर में एक अजीब सी ख़ामोशी सताने लगी
यूं ही हमें डराने लागि
डगमगते कदम मेरे चल पड़े थे जाने कौन डगर
चालते चलते देखा तोह
देहलीज़ लांघे चुके थे हम
लोगों की उस राफ्टर में
अकेलापन को अपना मान चुके थे हाम।।।
Heart touching ???
Like I used to tell you … It’s always at its best …. I just loveeeeee your writings … we have such awesome hands?❤
As usual …it’s damn awesome ?
Great poem,every bit of it carries a great meaning …keep it up??
Such a great day to c ur poetry in a national platform..
Keep writing,and keep amazing me..