
By
Kamaldeep Sahu
मैं एक सुविधाजनक भारतीय हूँ
रॉक सुनता हूँ, पर शास्त्रीय हूँ
गीता पुराण का आज्ञाकारी
कानून का भ्रष्टाचारी हूँ
चार युगों के द्वंद में फंँसा
मैं एक असमर्थ संस्कारी हूँ
धर्म जाति का पक्षपाती
मैं बातों में बहुराष्ट्रीय हूँ
मैं एक सुविधाजनक भारतीय हूँ
रॉक सुनता हूं पर शास्त्रीय हूँ
रात के सन्नाटे में
मैं देह का व्यापारी हूँ
सूर्य की पहली किरण से
मैं भगुआ चोगा ब्रह्मचारी हूँ
बहरों कि भीड़ में चीखता
मैं एक बाईस भाषीय हूँ
मैं एक सुविधाजनक भारतीय हूँ
रॉक सुनता हूं पर शास्त्रीय हूँ
मैं विकास का स्टील सिंह
मैं डिजिटल भारत का निर्माता हूँ
मैं काले धन की वैधता
मैं भारत भाग्य विधाता हूँ
दरिद्र जनता का पर्याय
मैं पूँजीपतियों का प्रिय हूँ
मैं एक सुविधाजनक भारतीय हूँ
रॉक सुनता हूं पर शास्त्रीय हूँ
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Indianess'