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स्वाति आनंद

निकलेगा आज हर घर से रावण ।
एक रावण को जलाने को।।
पाप पर धर्म की जीत का।
यह पावन पर्व मनाने को।।
हर घर में है रावण ।
और सीता लाचार है।।
पर पुतले वाले रावण का।
जलने का ही बस प्रचार है।।
अधर्म पे धर्म की जीत का ।
ये खेल तो बस एक आडंबर है।।
चारो तरफ तो अधर्म ही है फैला।
हर तरफ बह रहा खून का समंदर है।।
भाई ,भाई का है नहीं
बाप भी बेटी से आँखे चार अब करता है।।
फिर कैसे बुराई पे अच्छाई की जीत का हम पर्व मनाते हैं।
जब बेटियों को बलात्कार होने के बाद मरना पड़ता है।।।
दहेज़ के लिए कई घरों में सीता जलती है।
रावण वही खड़ा हो देखता है।
कब जल्दी सीता मरती है।।
हिन्दू और मुस्लिम के बीच होती ऐसी लड़ाई है।
की कटता किसी का सर पैर है।
तो कटती किसी की कलाई है।
फिर ये सोच लगता है ।
की कैसे ये बुराई के ऊपर जीतती अच्छाई है?
जहाँ सीता हर दिन सहती दरिंदगी है।
जहाँ सीता का केवल चूल्हा चौका में ही सीमित जिंदगी है।
जहाँ सीता को बलात्कार के बाद मार दिया जाता हो ।
जहाँ सीता को कोख में ही उजाड़ दिया जाता हो
वहां रावण का पुतला जलाने से क्या होगा?
हर घर से रावण मारो,खुद के अंदर का रावण मारो।
तभी हर में राम होंगे और धर्म का भला होगा।।
Bhut bdiya
Thoughtful.😊