
By Yuneeb Zafar
लौटा दो मुझे बचपन मेरा
शैतानियों से भरा गुलदस्ता मेरा
खिलोनो से भरा बस्ता मेरा
लौटा दो मुझे बचपन मेरा
लड़-खड़ा के चलना मेरा
बिना फिक्र के बोलना मेरा
झूलो मे झूलना मेरा
लौटा दो मुझे बचपन मेरा
सबकी गोद मे जाना मेरा
ऑगन मे खिल-खिलाना मेरा
पेड़ के नीचे सो जाना मेरा
लौटा दो मुझे बचपन मेरा
दादी के आंचल मे छुप जाना मेरा
दादा से ज़िद्द करके दिखाना मेरा
हर एक ज़िद्द को मनवाना मेरा
लौटा दो मुझे बचपन मेरा
पापा के जैसा बन कर दिखाना मेरा
माँ के आते ही गलतियों को छुपाना मेरा
बहन से लड़ कर दिखाना मेरा
लौटा दो मुझे बचपन मेरा
वो मासूम सा चेहरा मेरा
दोस्तों से रुठ जाना मेरा
वो अटपटा सा रो कर दिखाना मेरा
लौटा दो मुझे बचपन मेरा।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'An Experience That Changed My Life'