लोग क्या कहेँगे?

By Ethan Arya

 

मै अक्सर डरता रहा अपनी कमजोरियों से अपनी नाकामियों से

भूल गया था शायद, की गिरते भी तो इंसान ही है

कभी लड़ना भूला तो कभी भूला खुद को

घुटता रहा अंदर ही अंदर इस डर से 

श्श्श्श्श! कोई सुन लेगा, नाकाम रहा मैं इस जंग में

अरे आसान ही तो था फ़लाँ क्या सोचेगा,

और लोग क्या कहेंगे? डर ये भी था इक मन में

हाँ!  हो गया खत्म वो सब इक पल में 

कल था, वो बीत गया फिर भी सब कुछ तो सही है

ख़ामख़ा डरता रहा इस डर से

लोग क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे कोरी बातें है सब

क्यों न कह दूँ उन सब से की इक उम्र लगी है पाने में खुद को

गिर जाऊं तो अब कोई डर नहीं पर फिर से वैसे गिरना मंजूर नहीं मुझको

ख्वाहिशे अब भी रखता हूँ पहले के जैसी

और हंस देता हूँ ये कहकर की लोग क्या कहेंगे?

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'What will people say / Log kya kahenge'

1 comment

  • Beautifully written

    Navneet Bhaskar

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