By Heta Thakar
बात है ये कुछ अरसा पुरानी, खुद से रुबरु होने की कहानी
यूं तो निकले थे पूरी दुनिया देखने को, डगर थी ये थोड़ी सी पहचानी थोड़ी सी अनजानी
निकले बाहर उन चार दीवारों से
रिहा किया खुद को अपने ही आप से
माना कि तजुर्बा नहीं हमें ये मंज़र का
फिर भी चल पड़े बेमंज़िल रास्तो पे
बढ़ रही थी मैं धीरे धीरे आगे, भूल रही थी मैं सारी फिकरे
गौर दे रही थी इस प्रकृति पे, इस खूबसूरती पे, इन पहाड़ो पे, इस मिट्टी पे
ये हवा की सरसराहट, सूखे पत्तों की खनखनाहट
पिघलते बादलो पे चढ़ के आसमान को छूने की चाहत
वो झरने की मचलती लहरो का धड़कन के साथ ताल मिलाना
पागलो की तरह उछलते कूदते बहते बहते अपनी ही धून गुनगुनाना
ये सूरज की किरणों का बादलो के साथ मिलकर लूकाछुपी खेलना
और सीना तान खड़ी चट्टानों का अचानक से अपनी अकड़ छोड़ देना
लग रहा था जैसे,
ये वादियां मुझे गले लगा रही हो
मिट्टी की खुशबू रूह में फैल गयी हो
इन किरणों ने सिर्फ मेरे लिए रंग बिखेरे हो
और इन ऊंचाइयों को मेरी बेफिक्री भा गयी हो
हर एक लम्हा एक नशा लग रहा था
कुछ साजिश रब की भी थी जो ये नशा हम पर चढ़ रहा था
पत्थरो के किनारे अपना वजूद सँभालते हुए निकले छोटे से पौधे और वो पौधों की शान बढ़ाते हुए खिले फूलो की पत्तियां हवा में अमृत घोल रही थी
न जाने ये क्या था जो मैं महसूस कर रही थी
ये ऐसा निर्मल सा रिश्ता था
जैसे गहरी सांसे और प्यारा सा वो एहसास
जैसे आवारगी और सरफिरा अंदाज़
जैसे कुछ अनकही बाते और अनसुने राग
जैसे सिर्फ मैं और मेरे दिल की आवाज़
यक़ीनन मुझे कुछ तो होने लगा था
शायद, इस बंजारेपन से अब इश्क़ होने लगा था।
Thank you so much for reading it and giving your valuable comments.
प्रकृति का अच्छा प्रयोग,
है अनुभवों का ये योग…. उम्दा कविता
Beautiful one
Congrats Dear✨😀
Nice words and phrases. Truly organised and full of natural imagination. Salute to your knowledge of hindi vocabulary. Keep writing and posting. Congrats.
Congratulations..such a amazing poetry…
Very nice
💟💟 Congratulations
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Very nice