By Sweeta Jain
देश में लाखो बच्चो की तरह,
मैंने भी चूहों कि दौड़ में हिस्सा लेने का सोच लिया,
इस बात से अंजान की,
इसका अंज़ाम शायद कुछ और ही होने वाला था।
बहुत मेहनत करी साल भर,
सिर्फ अपने नाम के आगे "Dr." लगाने के लिए,
और देखते ही देखते,
परीक्षा भी हो गई,
और नतीजे भी आ गए।
विश्वास था कि मुझे मेडिकल में एडमिशन जरूर मिलेगा,
क्योंकि मुझे मेरी मेहनत पर पूरा भरोसा था,
लेकिन नसीब को शायद कुछ और ही मंजूर था,
शायद मेरे सपनो का टूटना ही नसीब को मंजूर था।
धक्का बहुत जोरों से लगा था,
लेकिन सपनो का टूटना ये सीखा गया कि,
हमेशा हमारे मन के अनुसार सब कुछ नहीं होता,
जो होता है वो अच्छे के लिए होता है,
बस जरूरत इतनी सी है कि,
मुश्किल राहों में भी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ना है,
आत्मविश्वास को कभी कम नहीं होने देना है।
शायद नसीब कि उस किताब में,
भगवान ने कुछ सुनहरा सा हमारे लिए भी लिखा है,
जो शायद आज हमे पता नही है,
लेकिन जब पता चलेगा,
तब "मैं ही क्यों?" का उत्तर भी हमे मिल जाएगा।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'An Experience That Changed My Life'