माँ – Delhi Poetry Slam

माँ



By Ankita Yadav

माफ करना माँ मुझे, शायद गलती मेरी ही थी

बचा ना पायी मैं खुद को, कुछ तो कर सकती ही थी |


पहचान ना पायी उसे, कैसे पहचानती ,रक्षक बनकर जो आया था

कलाई पर अपनी सूत्र बँधवा कर, रक्षा का भरोसा जो दिलाया था |


कैसे बताती माँ तुझे, जानती थी तू बहुत रोएगी

जितना खून मैं हूँ तेरा, उतना ही वो भी तो है |


किसको चुनेगी, कैसे चुनेगी, बस यही सोच कर रह गई

तू कहेगी, मैं सबसे प्यारी, पर अंश तेरा वो भी तो है |


एक भार रखी हूँ अपने सिर पर, गिर रही हूँ अपनी नजरों में मैं

एक भार तुझे कैसे दे दूँ, गिर जाने दूँ तुझे भी तेरी नजरों में |


जब कहा तूने संभलकर जाना, हामी भर आगे चल दी मैं

तू क्या जाने माँ ये बेटी तेरी, सँभल गई थी घर ही में |


सब कहते हैं मै गुस्सैल बहुत हूं, क्या बताऊँ भरा है कितना मन में

चाहा तो कई बार खत्म कर दूँ उसे, पर थम गई फिर


आखिर कैसे हाथ उठते माँ, रोते तुझे फिर देख लिया

और चुप चाप सब फिर सह गई मैं |


माफ करना माँ मुझे, शायद गलती मेरी ही थी

बचा ना पायी मैं खुद को, कुछ तो कर सकती ही थी |


पर अफसोस नहीं है तुझसे सब छिपाने का, तेरी हँसी से ही तो बँधी हूँ

खुदको रो कर हँसना सिखाया है, तुझे आँसुओं में कैसे बहने देती मैं |

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'My Sincerest Apologies' 

2 comments

  • बाहरी लोगों से में फिर भी बचालूँ,
    घर के अंदर कैसे क्या पहरे लगा लूँ।

    Ambuj
  • Touching

    Anup

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