वो कहती थी, प्यार का डेफिनेशन भी पता है?
मैंने कहा, “अजी छोड़ो, डिक्शनरी के पन्नों में क्या रखा है”।
नए प्यार का जुनून था, सवालों और जवाबो के परे
जवाब देने हम तैयार थे, पर कभी वो सवाल तो करे
कभी गुस्से में वो रूठ कर जाने को कहती मुझे, पर कमबख्त
फिर ले आया दिल।
प्यार की बेफिक्री थी, दाव पे था दिल, जिस्म और जान
तीन साल बीत गए, और यूंही गुजरता रहा इश्क़ का कारवां
दिल में थोड़ी सी हिम्मत जगी, सोचा इस प्यार को नया नाम दूं
अचानक एक रोज़ उसने बताया, पापा का हो गया ट्रांसफर, अब बताओ मैं क्या करूं
कभी ना मिटने वाला प्यार अब टूटने की मोड़ पर था
सोचा था आखरी दिन उससे नहीं मिलूंगा, पर कमबख्त
फिर ले आया दिल।
ट्रेन में बैठे 15 मिनट, वो मेरी तरफ़ देख, मैं उसकी तरफ देख रोता रहा
जो शुरू ना हुआ प्यार से, वो अब प्यार लगने लगा था
था तो ये भी ब्रेकअप, दिल का नहीं मेरी हिम्मत का
जो कभी इज़हार न कर पाए, तो बताओ इस प्यार में बाकी क्या रखा था
उसने पूछा क्यों मिलने आए आखरी बार, अब ब्रेकअप का गम तुम्हे रुलाएगा
कैसे बोल पाता उसको कि दिमाग ने बहुत रोका ख़ुदको, पर कमबख्त
फिर ले आया दिल।
इस बात को गुज़रे अब 15 साल बीत चुके थे
कितना मुश्किल होता है उस प्यार को भुलाना जो मुकम्मल कभी ना हुए थे
आज अपनी ज़िन्दगी में हम खुश तो थे, लिए गमो की परछाई भी
पर शायद इसे ही प्यार कहते हैं, जो हर दर्द की दवा है और ख़ुद दर्द भी
साल में दो बार वीडियो कॉल कर लेते हैं हम एक दूसरे को
आज 7 नवंबर उसका जन्मदिन था, आसुओं को दिल में छुपाकर फिर दिल किया उसे नंबर मिलाने को
उसने कहा इस कॉल का इंतज़ार मुझे हर बार रहता है
कभी तो प्यार का इजहार करो, ये मत कहना फ़िर से कि
फिर ले आया दिल।