जब जब मैंने दुनिया को पढ़ना चाया है
तजुर्बों को सदा मुझपर मुस्काते पाया है
तजुर्बों ने मुझे हमेशा कुछ नया सिखाया है
गिर कर संभलने का तरीका समझाया है
जिस कारन मेरी जिदंगी में आए बहुत बदलाव आया हैंं
पहला बदलाव परिवार से आया है
जिन्होंने मिल बाँटकर खाना मुझे सिखाया था
दादू दादी ने हमेशा सिर पर बिठाया था
फिर न जाने उनके जाने के बाद लगा हम पर कौन सा साया था
जिसने मेरे परिवार को टुकङों में बँटवाया था
किसी अपने के जाने के बाद होता बङा दुख है
तजुर्बा सिखाता है कि हँस कर कुछ बातें टाल देने मेंं ही सुख है
दूसरा बदलाव दोस्तों ने लाया है
एक दोस्त को मैंने दिल से अपनाया था
अपना प्यार उसपर बेशुमार लुटाया था
ना जाने क्यों उसने मेरे प्यार को दिखावा बताया था
उसकी परवाह न करने वालों को उसने सिर पर बिठाया था
तब एक दोस्त ने मुझे ये पाठ पढा़या था
तजुर्बों का खेल मुझे तब समझ आया था
सब कहते हैं दोस्ती बहुत हसीन है
तजुर्बा सिखाता है ज्यादा प्यार दोस्ती क्या रिश्तों को भी करता मलीन है
किसी के समझाने से कुछ बातें समझ नही आती है
और तजुर्बों की भाषा सदा इन्सान को सदा एक नया बदलाव दे जाती है
कभी कबार सोचती हूँ कि
काश जिन्दगी एक किताब होती
तो फाङ सकती उन लम्हों को जिन्होंने मुझे रूलाया है
और जोङ सकती कुछ पन्ने जिनकी यादों ने मुझे हँसाया है
पर ऐसा कहाँ होता है
जिदंगी के खेल मेंं तजुर्बा ही इक्का होता है।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'An Experience That Changed My Life'
Congo dear