डियर डायरी – Delhi Poetry Slam

डियर डायरी

By Vageshwari Nandini

 

आज स्कूल का आखिरी दिन था,

और शायद उससे आखिरी मुलाकात भी।

कहीं ग़मगीन सिसकियाँ थी,

तो कहीं हँसी ठिठोली का माहौल भी।

बिछड़ने का खयाल सोच कर कुछ रो पड़े,

कुछ ने हँस कर अश्कों को छुपा लिया।

किसी के आंखों में हसीन सपने थे कल के,

तो किसी का आज वहीं था थम गया।

बाहर शोर गुल का माहौल था,

अंदर कुछ तूफ़ान सा उमड़ रहा।

कोई समेट रहा था अपने  सामान को,

किसी का सबकुछ था बिखर रहा।

मैं वहीं स्तब्ध खड़ा रहा,

एक टक उसे देखता रहा।

कुछ ख्वाब मैं बुनता रहा,

और फिर मन हीं मन कुछ सोच कर हँस पड़ा।

एक बात जो बस तेरे मेरे बीच थी,

सोचा उसे आज किसी तरह बोल दूँ।

जो अरसो से पल रही प्रीत थी,

उसका भेद चलो आज खोल दूँ।

क्या वो सुन कर मुस्कुराएगी,

या फ़िर मुझपर चिल्लायेगी।

देखते देखते आखिरी घंटी बजी,

सभी बस्ते उठा कर चल पड़े।

मेरे होंठ लड़खड़ाए मगर,

फिर ना जाने क्युँ सिल पड़े!

मेरी पलकें झपकी,

और ना जाने कब वो वहां से निकल गई।

मैं अब भी वहीं स्तब्ध खड़ा रहा,

उसी पुरानी उलझन में उलझा रहा।

क्या वो मुस्कुराएगी या फिर चिल्लाएगी?


3 comments

  • Sucha cute poem 🌼

    Swats
  • Lovely

    Dr bhakti sheth
  • Loved it …Nice lines

    Kakoli

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