जिधर बसेरा था कभी तुम्हारा

इक धुआं सा उठता है,
शायद कुछ जल रहा उधर,
जिधर बसेरा था कभी तुम्हारा
शायद मुझसे ही जल गया,
बड़ा अशांत था,
जिधर बसेरा था कभी तुम्हारा
इक कुटिया थी, इक चारपाई,
और बक्से में संजोई कुछ यादें,
इंतज़ार में तुम्हारे, के शायद आओ
पर वीरान ही रह गई वो कुटिया,
जिधर बसेरा था कभी तुम्हारा
संजो रखी थी मैंने भी,
जर जर ही सही, सबसे बचा रखी थी
दिल के कोने में कहीं कुटिया वो
जिसमे बसेरा था कभी तुम्हारा
पर वो विरानगी कचोटती है,
इक रवानगी का एहसास है
उस इंतज़ार में भी,
बोलो कब तक बचाता वो कुटिया
जिसमे बसेरा था कभी हमारा..\
-------------------------------------------------------------------------------------------
This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Breakup'

1 comment

  • Nice

    BP sunaria

Leave a comment

Please note, comments must be approved before they are published