ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए ज़िंदगी

By Varsha Karnani

ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए ज़िंदगी

बस इतना ही कि -

जन्म लेने से पहले ही मरने का खौफ़ ना हो।

ज़िंदगी जीते हुए सपने देखने पर रोक ना हो।

 

जीवन का लक्ष्य सीमित ना रहे

बस दसवीं की परीक्षा के निबंध तक।

महत्वाकांक्षाओं को दबाकर, जी पसीज कर

जीना न पड़े अंतिम दम तक।

 

ना रहे कोई पाबंदी हर दफा घर से निकालने पर,

ना सोचना पड़े कई मर्तबा अपना मनपसंद व्यवसाय चुनने पर,

ना हो हिचक अपने ही शहर मे बेखौफ़ घुमने पर,

ना सुनने पड़े लोगों के तानें अपने ही पैरों पे खड़े होने पर।

 

शादी करके पिता का घर छोड़ना तो मंजूर है,

पर उनका सहारा बनने से मुँह मोड़ना ना पड़े।

नया नाम जोड़ने से डर नहीं लगता मुझे,

बस पिछले नाम को सदा के लिए छोड़ना ना पड़े।

माँ बनने की तमन्ना तो हर नारी को है,

पर बच्चों के लिए अपनी कामयाबी से मुँह मोड़ना ना पड़े।

गृहिणी बनने से ऐतराज़ तो है नहीं,

बस नई पहचान के सबब पुरानी वाली को छोड़ना ना पड़े।

 

तुलना क्यों ही करनी जब ईश्वर ने

बनाया ही नहीं सबको एक समान।

बस नारी होने पर ऐसी निगाहों से ना देखो

कि डगमगा जाए मेरा सम्मान।

मुझे नहीं चाहिए कोई अधिकार अमुक से अधिक

पक्षपात का अंत हो, यही है नई सोच का प्रतीक।

 

 

ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए ज़िंदगी

बस इतना ही कि -

जन्म लेने से पहले ही मरने का खौफ़ ना हो।

इस दुनिया से विदा लेते वक्त अपने नारी होने का अफ़सोस ना हो।


Leave a comment

Please note, comments must be approved before they are published