चाय या काॅफ़ी

By Akhilesh Sharma
देखो, बहुत अर्से बाद, कुछ मेहम़ान आए हैं फिरसे,
ज़रा पूछो, क्या लेंगे, 'चाय या काॅफ़ी'? 
कुछ खाने का भी इंतज़ाम करते हैं फिरसे, 
कि कुछ भूक तो लगी होगी, 
सड़कें तो हैं नहीं याहं, पैदल ही आए हैं फिरसे ।
इसी बहाने से घर कुछ रौनक आ जाएगी फिरसे
जो यह ठंडा पड़ा चूल्हा है, वो भी जल उठेगा फिरसे
राशन तो कम ही बचा है, साल के सूखे के बाद
लेकिन, कमी ना रह जाए मेहमान-नवाज़ी में
काहा करते हैं, 'मेहमान भगवान होते हैं'
नाराज़ ना कर दे गलती से, हम भगवान को फिरसे।।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Indianess'

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