Dr Ankur Gupta
धूप को सदा छिप कर ही देखा
सहमा उजाला रात में रखा है
ख़्वाहिशों ने कभी हिमाक़त नहीं की
ज़रूरतों ने इन्हें औक़ात में रखा है
तुझे परदे का शौक़ है तो मेरी क़लम छीन ले
तेरी तस्वीर बनाने का हुनर मेरी हर बात में रखा है
ये दिल जिसकी सौग़ात था वहाँ महफ़ूज़ है
जो यहाँ धड़कता है कोई ले जाए ख़ैरात में रखा है
मिलता हूँ ख़्वाबों में ख़यालों में शायरी में और डायरी में
तो अब बताओ क्या तस्वीर में क्या मुलाक़ात में रखा है
डर के पन्ने, फ़िक्र की स्याही, कश्मकश के लिफ़ाफ़े
मेरी शिकस्त का सामान पक्के काग़ज़ात में रखा है
ख़ता की इश्क़ में अब सज़ा-याफतॉ हूँ
आरज़ू सलीब पर हौंसला हवालात में रखा है