फिर आज ये सोचकर परेशान हूँ मैं
ना जाने कब तक खुद से अन्जान हूँ मैं
हर क्षण ये सोचता हूँ मैं
लोगों के मन में खुद को ढूंढता हूँ मैं
अब स्वयं से कब तक करूँ मैं युद्ध
यूँ लगता है कि सभी हैं मेरे विरुद्ध
मुझ संग कितने इस घाव को सहते
और फिर सोचे कि लोग क्या कहते
हर पल खुद को समझाता हूँ
अपने दिल को बहलाता हूँ
जो भी करूँ अपने ह्रदय की सुनकर
कोई ना देखे मुझे फिर मुड़कर
हर दिन स्वयं से करता मैं शंका
कई रावण की दिखे ये लंका
अब कोई ना करता अपने मन का
बिना ध्वनि अब बजे है डंका
लोगों की बातों से मैं भी ना बच पाया
ना समझू मैं कैसी है इन बातों की माया
क्यो खुद को तू ना समझा पाए ये तेरी ही है काया
क्योंकि तुझ संग दिखता दूजों को ये साया
आस पड़ोस परिवार और मित्र
सभी हर पल देखे तेरा चरित्र
समाज की कैसी संरचना ये विचित्र
हर पल निर्माण करे तेरा चित्र
सभी की बातें सुनकर मैं डरता
जिंदा रहकर फिर भी मरता
अंदर अंदर मैं भी सड़ता
दुनिया में जन क्या है कहता
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'What will people say / Log kya kahenge'
Featured Image Credits: Sashwati Bora
ULBNzmMErfD
bahut hi achaa
Nice lines..Amazing work.
👏🏻👌🙌🌼
Bahot khoob !