उस रोज

शिव कुमार कुशवाहा 

"भागों, बचाओ, मदद, अभी वो यही थे" जैसे शब्द 
और लाशों से लदी वो माल गाड़ी 
जिसे कोई आग लगा रहा था!
मौत की नींद सोयी एक माँ के पास बैठे छोटे बच्चे
की मुट्ठी मे खून से सनी साड़ी, 
जिसे वो शायद भूख के कारण चबा रहा था!
वो खून में महकती लाल आंधी कब्रिस्तान के रस्ते
हर तरफ फैल रही थी!
आज आजाद, भगत, महात्मा, बोस की ज़मीन पर
मौत खेल रही थी!
क्या होता अगर उस रोज बटवारे की जगह, 
बटवारा ना करने के विकल्प पर अमल हुआ होता?
तो शायद अख्तर, वकार, इकबाल
कपिल, सचिन, सहवाग एक टीम से खेले होते!
तो शायद मसूद, कसाब, याकूब इंसानियत के ख़िलाफ़ नही,
यशवंत, दलबीर, लामा के साथ देश के लिए बॉर्डर पर लड़े होते!
ये विकल्प ही तो हैं जो किसी को दानव
तो किसी को इंसान बनाते हैं!
ये विकल्प ही तो हैं जो किसी को लादेन
तो किसी को मोहम्मद उस्मान बनाते हैं!
व्यापरियों के भेस में, राज्य के भूखे 
कुछ नापाक इरादों ने इस भूमि पर कदम गड़ाए थे!
वीरों को गुलाम बना, मासूमों को मौत के घाट उतार,
ना जाने कितने ख्वाबों के आशियां, बम से उड़ाए थे!
क्या होता अगर उस रोज एक औरत ने राजनीति के तांडव के ख़िलाफ़
तलवार उठाने के विकल्प की जगह,
लाखों जिंदगी की उम्मीद की गुहार लगाती
आाँखों के लिए शरण का विकल्प चुना होता?
तो झाँसी के हर घर मे निर्भया, हर बच्चे को मजदूर,
हर मर्द को बेबस बनाया होता!
उन किलो में जीत के सुरों की जगह
मातम का सन्नाटा छाया होता!
ये विकल्प ही तो हैं जो रानी लक्ष्मी बाई को जन्म देते है!
ये विकल्प ही तो हैं जो गुनाहों की कमाई को जन्म देते हैं!
व्हीलचेयर पर बैठा वो पेरालाईज़ड शरीर, 
दया से देखती अपनों की आंखे,
और रोज कतरा कतरा बिखरता सपना, 
खाना हो या नहाना, किसी को टकटकी लगाकर देखना,
कुछ ना कर पाने की जद्दोजेहद में अंदर ही अंदर तड़पना!
क्या होता अगर उस रोज एक खिलाड़ी ने हॉकी थामने की जगह, 
दर्द में लिपटी किस्मत के विकल्प को चुना होता?
तो शायद संदीप सिंह फ्लिकर सिंह ना बना होता,
145 किमी/घंटे की ड्रैग फ्लिक और
भारतीय हॉकी टीम को ऐसा कप्तान ना मिला होता!
ये विकल्प ही तो हैं जो किसी को गली का रमेश 
तो किसी को सुनील छेत्री या अभिनव बिंद्रा बनाते हैं!
ये विकल्प ही तो हैं जो किसी को गुमनाम
तो किसी का नाम बनाते हैं!
घर लौटने की आस, अपनों के दीदार को तरसती आंखे, 
भूख का दम घौटती लाचारी की दीवारें!
हौसलों और मेहनत की सीढ़ी चढ़, 
दोलत, शोहरत, इज्जत को मुट्टी में रखने वाले सितारे!
क्या होता अगर उस रोज ऐशो आराम की जिंदगी का विकल्प छोड़, 
कुछ लोगों ने मुस्कुराहटैं बाँटने का विकल्प ना चुना होता?
तो शायद कुवैत में जिंदगी और मौत के बीच झूलते
1,70,000 हिन्दुस्तानी कभी घर ना लौटते, 
महामारी के बुने जाल में फ़ंसा एक बाप
अपने बच्चों से ना मिला होता, 
ये विकल्प ही तो हैं जो मैथ्युनी मैथ्यूज को किसी का मसीहा, 
तो सोनू सूद को किसी का भगवान बनाते हैं!
ये विकल्प ही तो हैं जो हालातों के फंदे मे दम तोड़ती 
भूख को जीने की आस का निवाला दिलाते हैं!
अपने गुरु के विरुद्ध बाण उठाने का विकल्प हो (*अर्जुन) 
या मित्र के लिए अधर्म अपनाने का विकल्प (*कर्ण)
पत्नी के अपमान के प्रतिशोध का विकल्प हो (*द्रौपदी) 
या अधिकारों के लए महाभारत का विकल्प 
कंस की म्रत्यु से लेकर, सीता के हरण तक
यीशु के सूली चढ़ने से लेकर मौत से वापस आने तक
सब विकल्प ही तो हैं,
 
विकल्प सत्य असत्य के बीच, 
विकल्प धर्म अधर्म के बीच
अंधेरे उजाले के बीच, 
सही गलत के बीच
क्या होता अगर इन कथाओं में विरुद्ध विकल्पों का चुनाव होता?
क्या होता अगर झूठ, सच से जीता होता?
अंधेरा उजाले को खा गया होता?
धर्म की जगह अधर्म की स्थापना होती, 
इंसाफ के सूरज पर अत्याचार का बादल छा गया होता?
तो शायद इस सृष्टि का संहार होता, हर जगह विनाश होता, 
कण कण बिखर जाता और एक  दुनिया का पुनः निर्माण होता!
पुनः निर्माण के कार्य से बचने हेतु आलस का विकल्प हो
या खुदा की इस पृथ्वी से मोहब्बत का विकल्प,
ये विकल्प ही तो है जिसने जीवन के एक एक कण को बचाया है!
ये विकल्प ही तो है जिसने हमें, हम जो हैं वो बनाया है!

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