उम्मीद

By Charu Nema

 

मैं पतझड़ में भी उन सूखे दरख्तों को सींचते हुए,

सावन की उम्मीद रखती हूँ |

मयखाने के टूटे हुए जाम में भी,

इक खुशनुमा अंजाम की उम्मीद रखती हूँ |

 

मंजिल की इस बेतहाशा दौड़ में औरो से नहीं ,

खुद से जीतने की उम्मीद रखती हूँ |

उस धुंधले आईने में अपना अक्स,

ढून्ढ पाने की उम्मीद रखती हूँ |

 

बंजारों की बस्ती में गई थी अजनबी बनकर ,

वहां मैं आज भी बसेरे की उम्मीद रखती हूं |

खौफ़ के साये, अन्धकार की महफ़िल में भी मैं,

टिमटिमाते जुगनू की उम्मीद रखती हूँ  |

 

जीवन में परिस्तिथियों का क्या है ,

बदलती हैं , बिखरती हैं , बरसती हैं |

शायद मेरी सबसे बढ़ी शक्ति यही है कि,

मैं हताशा में भी उम्मीद रखती हूँ |

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'My Superpower'

2 comments

  • Really good 🌼💙
    -Hemangini (@thehedonistwriter)

    Hemangini Mandaliya
  • Nyc

    Kiran

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