आम के पेड़ में छिपे कई यादें हैं

आम के पेड़ में छिपे कई यादें हैं 
गांव की मिटटी की बात ही अलग हैं 
आचार की खुशबू  ही हैं 
जो दिल के जुबान को ललचाती हैं 
ज़माना हो गया है यह चीस का 
पर कोई जवाब नहीं देसी मक्खन का 
चकाचौंद है नए रेस्टोरेंट्स का
पर कोई जवाब नहीं माँ के खाने का 
ताबीज़ सा पेहेन लिया देश की संस्कृति का
 क़रीब रहे ताकि दिल के वह तिरंगा
खून भी रंगा हो उन् तीन रंगो से 
रूह भी कापे न उस झंडे मे लिपटने से 
मंदिर और मस्जिद अनेक
पर राष्ट्रीयता एक
नमाज़ और भजन अनेक
पर सुर एक 
गुरुद्वारे और चर्च अनेक
पर मिठास एक 
काफी पंख है इस वतन के
पर उड़ान हम एक साथ करेंगें 
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Indianess'

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