Anuj Singh Bisht
बैठ जाता हूं मैं आँगन में हर शाम
शायद कभी तो तेरी आवाज की आहट होगी
.
नहीं देखूँगा तुझे पीछे पलट के अब मैं
तेरी भी तो वही पुरानी चुपके से,
मेरी आँख बंद करने की चाहत होगी
.
इन्तजार सिर्फ सूरज ढलने तक ही सीमित नहीं
मुझे तो ये भी पता हैं कि इस आसमा में,
सितारों की संख्या कितनी होगी
.
हर बारी ये रात काली अब नहीं होगी
तेरे आते ही सुबह की लाली होगी
.
तूने तो सपने देखे थे बहुत से,
पर मैंने तो सिर्फ
तुझे पाने का एक ख़्वाब देखा हैं
जरा देर से
हा जरा देर से,
अर्जी लगी हैं खुदा के घर
मन्नतें तेरी भी पूरी होगी
मन्नते मेरी भी पूरी होंगी
.
इतना तो पता हैं मुझे कि,
अगर मिलने की आग इधर हैं,
तो मिलने की आग उधर भी होगी
नहीं पीछे पलट कर देखूंगा तुझे अब मैं
तेरी भी तो वही पुरानी चुपके से
मेंरी आँख बंद करने की चाहत होगी ।।
Bahut khoob…
That’s great….
बहुत खूब लिखा हैं मित्र । बहुत बहुत बधाई ।