अपनेपन का घर- मेरा भारत

By Srinidhi Srinivasan

 

ख़ामोश भीड़ में भी कोई अपना मिल ही जाता है,
अकेले रास्तो पर काफ़िला खुद साथ चला आता है,
यहां प्यार का कारवां कभी नहीं रुकता है,
यह भारत देश है जनाब, यहां हर मुसाफिर को भी घर मिलता है।।
यहां अनजान भी ग़ैर नहीं लगता, इस मिट्टी कि यह जात है,
अपनी मां की बात तो अलग ही होती है, पर फिर भी कोई अजनबी ममता की बारिश में भिगा ही देता है।
कुछ अलग मिठास है यहां हवाओ में, हर परिंदे को उड़ान भरने का हौंसला मिल जाता है।।
एक अलग सांस्कृतिक धरोहर है तहज़ीब, लिहाज और इतिहास की रवानी में,
यहां हर शहर की स्मारक में छिपी एक अनोखी कहानी है।
अलग अलग पकवानो की बौछार हैं,
आपस में बांटते मिठाई और साथ मनाते त्योंहार है,
होड़ में है ज़माना, पर अभी बसा हुआ बेशुमार प्यार है,
यहां आज भी आस पास के रिश्तों में लगता परिवार है
हर एक चाय के प्याले में पनपता सुकून और अपनेपन का जहां हैं,
मेहमान नवाजी में आज भी हमारा सबसे ऊंचा स्थान है, हमारे लिए हर अतिथि अभी भी भगवान है।
किसी भी कोने में चलीं जाऊं, एक बात का मुझे अभिमान है,
कि मुझ में सदा भारत का नाम वर्धमान हैं।
सभ्यता, अपनापन और प्यार का यहां अलग सा फूल खिलता है,
यह भारत देश है जनाब, यहां हर मुसाफिर को घर मिलता है। 

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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Indianess'

2 comments

  • Nyc

    Kiran
  • Amazingly penned!

    Priyanjana Das

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