By सुरभी जैन
मात्र सोचने में ही समस्या का हल नहीं होता
खोटे कर्मो का यूं मीठा सा फल नहीं होता
यदि उद्गम में बाधा हो तो अंत निर्मल नहीं होता
अगर है नींव ही कोमल तो शिशु प्रबल नहीं होता
जो काल कलवित हो गया! तो रूठना क्या?
जो कल संवर पाया नहीं! तो रुदना क्या?
जो यूं फिसल कर गिर गए! तो मूकना क्या?
जो लक्ष्य कोई था नहीं! तो चूकना क्या?
अब है समय जो मन में इक्षा(iksha) ठान ली है
हस्ती मिटी पर कितनों को यूं सांस दी है
तुमने अगर ये कार्य अब भी ना किया तो
इंसानियत की यूहीं फिर आहूती दी है
बन नहीं सकते हैं वो ना यंत्रों, ना औेजारों से
उग नहीं सकते हैं वो ना खादों, ना पतवारों से
वो दानी अजर है, अमर है और परे इन संसारों से
क्योंकि मृत्यु के बाद भी वो कहीं ऊपर है इन अवामों से
तो क्यूं! तो क्यूं स्वयं के साथ इनको तुम जलाते
क्यूं दान ना कर अन्य को यूहीं बचाते
अस्तित्व मिटने पर भी वर्षों तक हो जीवित
क्यूं बात इतनी खुदको तुम समझा ना पाते
नई पीढ़ी में बालपन से ही यदि तुम दान का बीज बो
युवावस्था तक वो बीज फल फूलकर वृक्ष बने जो
माना! माना कि इस युग में तपस्या भी एक मोह
तो क्यूं ना अंग दान कर अमर करें एक और निहशक्त समूह
ये छोटा सा प्रयास है मेरा, अंग दान से है अभिप्राय
मृत्यु के पश्चात भी तुम अगर किसी कार्य आ पाए
खुद भी कर सुरभी का हृदय सभी को प्रेरित करता जाए
मनुष्य योनी में होकर भी क्यों ना अती मानवीय कहलाएं
अंगदान सभी दानों में है सबसे श्रेष्ठ
क्योंकि नेत्र, रक्त, हृदय और सभी का, यही है समावेश
मानव होकर भी वो मानव कितनों में बस जाए
स्वयं सहित कितनों को अमर करें उसके अवशेष
और स्वर्ग में वंदन करते ब्रह्मा, विष्णु, महेश.... तीनों लोक के देव
As expected as always, only one sentence – keep going on u have beautiful future in poetry.
Acche vichar
उम्दा
उत्तम सोच 👍