मुखौटे – Delhi Poetry Slam

मुखौटे

By Saumya Juyal

चेहरे पर लगाए सभी ने मुखौटे,
भले जितने बाहर, अंदर उतने खोटे।
कोई दर्द में है, फिर भी हँस रहा है,
कोई झूठ से दिल को बहला रहा है।
दिखावे की ज़िंदगी सभी जी रहे हैं,
रोज़ ज़हर के घूँट पी रहे हैं।
है कौन अपना, है कौन पराया,
सभी ने चेहरे पर मुखौटा लगाया।
कोई छल रहा है, कोई छला गया है,
कोई थम गया, कोई चला गया है।
धीरे-धीरे समझ आ रहा है,
मुखौटा लगाना भी क्यों है ज़रूरी?
हर किसी ने लगाया नहीं शौक़ से,
सभी की है अपनी-अपनी मजबूरी।

 


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