By Sangeeta Bahuguna
कौन खजाना लुटा गया है, तेरी मुस्कानों पर ।
कौन मिट गया घुलकर तेरी, मीठी सी बातों पर ।।
किसने दी रक्तिम कपोल पर, सर्द हवा की थपकी ।
किससे बातें करती तेरी, लड़ी केश की खुलकर ।।
किससे नैन सजल होते हैं, कौन चुराता काजल ।
कौन है भरता स्वप्न सुनहरे, नैन, धूप से धुल कर ।।
कौन हास करता होठों पर, ऋतु बसंत सरसाता ।
कौन तुम्हारे मद में भरकर, हंसता है अब गुल पर ।।
किसकी बोली दंत पंक्ति पर, बैठ दामिनी दमकी ।
किसकी बातें हुई निछावर, मिश्री जैसी घुलकर ।।
कौन हथेली पर उसकी वह, नर्म छुवन रखता है ।
कौन है खोता सुध बुध पग पर, घुंघरू जैसा तुलकर ।।
कौन गीत गाकर मन का, संगीत सुना जाता है ।
कौन छलक जाता है हृदय से, कविता जैसी बहकर ।।