चमक – Delhi Poetry Slam

चमक

By Nishank Kesari

संगिनी की छाया को तुमने ग्रहण समझ लिया 
और पांव संगिनी से विदेश हो चले
दर्शक बनने चल दिए हो अनजान गलियों में।  

तो सुनो
वहां दिखेंगे अनजान मंदिर
और जाने माने तुम्हारे देव 
दोपहर के तले के उस पार 
लगेगा फिरभी की तुम कैद हो वो नहीं
समस्त संसार कैद है देव नहीं।  

बाहर से निहारते मंदिर में 
किसी पताका की छांव में 
सुनो कवि, 
तुम्हें दिख जाए शायद संगिनी की छवि
पर पताका पे सूरज की चमक का आनंद कैसे मिले 
जब पांव संगिनी से विदेश हो चले।  

और स्वयं दर्शक बनने चल पड़े हो अनजान गलियों में
तो सुनो युवा याद रखना 
की कहीं किसी चिड़िया को 
किसी गिलहरी को देखते 
तुम्हारी नजरें फस जाएं किसी घने पेड़ पर 
और वहां किसी नए पत्ते के रेशे की कोमलता से जा मिले 
किसी घोंसले में जा अटके 
तो मुस्कुराना।  

तो झूठ में हस्ते हुए मुस्कुराना 
क्योंकि किसी को किसी खिड़की पर उसी की तलाश है उसी का इंतजार है 
लेकिन फिर चलते चले जाना आगे 
क्योंकि वहां तलाश सिर्फ नकली हसमुख मुस्कुराहटों की 
और सच्ची हसी, वहां सबको हमेशा चुभी।  

खैर हर गली में इतना भाग्य नहीं मिलेगा 
हर गली में पेड़ नहीं, मंदिर नहीं 
पताका की लहराती शांति नहीं 
और न ही चिड़ियों की चहचहाट 
मिलेंगे बस सन्नाटा बिखेरते हुए 
बिजली के ऊंचे खंबे 
वहां कोई खिड़की खुली नहीं 
इंतजार खुद सज धज के बैठा है परदों के पीछे।  

बस खड़े होंगे जहां छज्जों पे भौंकते हुए कुकुर 
और बंद होंगे अंदर नन्हे बच्चे किन्हीं डरपोक और थके हुए मां बाप के 
पताका की लाली खोके कैद गई होठों पे 
उसकी चमक भी गायब होगी उनकी मुस्कानों से 
लेकिन फिर भी दिखेगी तुमको।  

यह वहां के सूरज की माया है 
जो बर्बाद कर देगा सब चमक रोशनी सड़को खंभों और मकानों के कांचों पे 
चौंधिया देखा आंखों को 
और हर तरफ दिखेगी चमक
हर तरफ दिखेंगी अप्सरा
जिनके लोक में तुम सदा विदेशी
मेहमान बने हुए 
सुंदर वस्तुओं के बीच एक और सुंदर वस्तु।  

समय नहीं होगा कुछ करने का 
कुछ किए बिना नहीं बढ़ेगा जीवन 
और इसी समय की कैद में
रुके जीवन में 
पड़े पड़े 
लिखोगे कवियों की कहानी 
हास्य गद्य और लोकगीत 
प्रेम सुख दुख हार जीत 
जिनमें होगी कभी 
आजाद संगिनी और कभी 
आजाद जीवनी।  

एहसान करो
उसमें संगिनी का करदो कतल 
लिखदो अपनी कैद का संदेशा 
और कागज़ को बनाकर वायुयान 
दूर करदो उससे भूतल
बेझ दो मेघों के ऊपर 
लेकर जाएंगे उसको 
वर्षा के साथ गिराकर 
उसकी छत पर 
जिससे उसका मन भी टूट जाए और रूठ चलें 
जिससे उसके पांव भी बढ़ जाएं विदेश हो चलें।


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