मेरी तरह – Delhi Poetry Slam

मेरी तरह

By Anwita Negi

तेज़ हवा की चपेट में
घौंसला एक आ पड़ा
अपूर्ण विकसित नन्ही चिड़ियाँ,
आ गिरी सुडौल कवों के झुंड में,
अपरिचित -अनजानों में,
सहमी -घबराई होगी वो, मेरी तरह।

काँ -काँ करते,
हँसते उसकी कोपल पंखों पे,
चोंच से दबोचते,
नापते अपने कद से,
चिढ़ाते पंखों की फड़ -फड़ाहट से,
देख उनको उड़ान भरते,
दम पूरा लगाती होगी वो, मेरी तरह।

विशाल आकाश देखती,
अपने शिशु नयनों से,
हल्की -फ़ुल्की क़द -काठी,
देख नाज़ुक़ पंखों को,
असहाय महसूस करती होगी वो, मेरी तरह।

समय से पहले,
वक़्त से ज़्यादा मिले संघर्ष
के अपने असफ़ल प्रयासों से,
हताश होती होगी वो, मेरी तरफ।

जूझना होगा अपनी सीमाओं से,
अकेले ही लड़ना होगा,
नियम उड़ने के शायद मुझे ही बदलना होगा,
हुँकार भरती होगी वो, मेरी तरह।

निद्रा में जब लिपटा दिन
रात्री में सब सो जाते हैं,
चाँद की रौशनी में,
अपने पंखों को तैयार करती होगी वो, मेरी तरह।
सांसें चल रहीं हैं
कहानी ख़त्म हुई नहीं मेरी,
बड़ा न सही,
राम सेतु को बनाने में,
गिलहरी जितना योग्दान
इस दुनियाँ को दे जाऊंगी मैं,
ये सोचती होगी वो, मेरी तरह।


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